डीआरवी डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल, फिल्लौर में ‘सफ़र-ए-शहादत’ को समर्पित कार्यक्रम का आयोजन

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डीआरवी डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल, फिल्लौर में ‘सफ़र-ए-शहादत’ को समर्पित कार्यक्रम का आयोजन

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फिल्लौर(एस. के.कपूर) 26 दिसंबर 2025

डीआरवी डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल, फिल्लौर में ‘सफ़र-ए-शहादत’ को समर्पित एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादों—बाबा अजीत सिंह जी, बाबा जुजहार सिंह जी, बाबा जोरावर सिंह जी एवं बाबा फतेह सिंह जी की अतुलनीय शहादत को नमन करने हेतु आयोजित किया गया।इस कार्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों को गौरवशाली सिख इतिहास के वीरतापूर्ण और प्रेरणादायक अध्याय से परिचित कराया गया। इस अवसर पर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा किला आनंदगढ़ साहिब छोड़ने से लेकर साका सरहिंद तक की ऐतिहासिक घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया।

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साहिबज़ादों पर आधारित इस शैक्षिक कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उनकी महान शहादत को स्मरण करते हुए विद्यार्थियों में साहस, वीरता तथा सत्य और न्याय के पक्ष में डटकर खड़े रहने की भावना का संचार करना था। विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से विद्यार्थियों एवं समस्त स्टाफ ने श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर नमन किया।कार्यक्रम के अंतर्गत शब्द उच्चारण, बाणी पाठ, सुंदर लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया तथा ‘चार साहिबज़ादे’ फ़िल्म का प्रदर्शन कर विद्यार्थियों को साहिबज़ादों की अनुपम शहादत, वीरता एवं धर्म की रक्षा हेतु दिए गए बलिदानों से प्रभावशाली ढंग से अवगत कराया गया। इसके अतिरिक्त ‘सफ़र-ए-शहादत’ सप्ताह के प्रत्येक दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एवं साहिबज़ादों से संबंधित ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से विद्यार्थियों के साथ साझा किया गया, जिससे वे सिख इतिहास की कड़ीबद्ध समझ विकसित कर सकें।
इन गतिविधियों के माध्यम से विद्यार्थियों को यह भी बताया गया कि दिसंबर माह सिख इतिहास में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी माह माता गुजरी जी सहित चारों साहिबज़ादों ने ऐसी अद्वितीय शहादत दी, जो इतिहास में न पहले कभी देखी गई और न ही भविष्य में संभव प्रतीत होती है।इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. श्री योगेश गंभीर जी ने अपने संदेश में कहा कि वास्तविक शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं होती, बल्कि चरित्र निर्माण और आने वाली पीढ़ियों को हमारी धरती की महान परंपराओं एवं बलिदानों से जोड़ना भी शिक्षा का उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि विरासत में मिले बलिदानों के इतिहास से नई पीढ़ी को सही और सार्थक ढंग से परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि विद्यार्थियों में साहस, वीरता और सत्य के संरक्षण का भाव विकसित हो सके।

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