अंगदान के प्रति दिखाएं दिलचस्पी, अपने अंगों के जरिये कई शरीरों में रहें जिंदा

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नई दिल्ली,  गत दिनों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 79,572 जवानों ने स्वेच्छा से अपनी मृत्यु के बाद अंगदान करने का फैसला लिया। इन सभी जवानों को ‘अंगदान योद्धा’ का दर्जा दिया गया है, जिन्होंने अपने विभिन्न अंगों और ऊतकों को अपनी मृत्यु के बाद दान करने के लिए शपथ पत्र भरा है। उनकी यह भावना लाखों लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करेगी। भारतीय संस्कृति में अंगदान की परंपरा काफी पहले से रही है। इस संदर्भ में महर्ष दधीचि का उदाहरण दिया जाता है, जिन्होंने असुरों से देवताओं की रक्षा करने के लिए अपने शरीर की सभी हड्डियों का दान कर दिया था। एक व्यक्ति मृत्यु के पश्चात अपना दिल, दो फेफड़े, दो गुर्दे, आंखें, अग्नाश्य और आंत दान कर कुल आठ लोगों का जीवन बचाकर आठ परिवारों में खुशियां लौटा सकता है। यह राष्ट्र की सेवा करने का एक विशिष्ट तरीका भी है। मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाने से बेहतर है कि हम अपने अंगों के जरिये कई शरीरों में जिंदा रहें। बीते कुछ वर्षो में देश में आकस्मिक मृत्यु के मामले बढ़े हैं, लेकिन अंगदान के प्रति जागरूकता के अभाव के कारण देश में हर साल अंगों की कमी के कारण पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है। अगर समय रहते इनके लिए अंगों के उपाय हों तो बेशक इन्हें बचाया जा सकता है।

गौरतलब है कि अंगदान के मामले में हम आज भी कई देशों से पीछे हैं। भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर मात्र 0.15 लोग ही अंगदान करते हैं, जबकि इतनी ही आबादी पर अमेरिका में 27, जर्मनी में 30, क्रोएशिया में 35 और स्पेन में 36 लोग अंगदान करते हैं। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो 2019 में 12,666 अंगों को प्रत्यारोपित करने के साथ भारत में विश्व में तीसरा स्थान पर रहा था। इधर कोरोना काल में भारत में अंगदान कार्यक्रम पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। कई ऐसे लोग जिन्होंने अंगदान की शपथ ली थी, कोरोना से हुई मृत्यु की स्थिति में उनके अंगों का उपयोग नहीं किया जा सका।

बहरहाल अंगदान एक ऐसा पुनीत कार्य है, जिसके लिए एक व्यक्ति को शपथ-पत्र भरने के सिवा कुछ भी नहीं करना पड़ता है। इस कार्य में किसी तरह का नुकसान नहीं होता और अपना जीवन जीने के बाद भी हम दुनिया में बने रहते हैं। हम सबों को अंगदान के प्रति जागरूक होकर आगे आना होगा। अब तो इसकी शपथ लेने की सुविधा ऑनलाइन उपलब्ध करा दी गई है। अंगदान को लेकर समाज में भ्रांतियों को दूर कर इसे जनांदोलन का रूप देने की आवश्यकता है। राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जहां ड्राइविंग लाइसेंस पर अंगदाता होने का चिन्ह अंकित करना प्रारंभ किया गया है। इससे दुर्घटना के पश्चात किसी शख्स के ‘ब्रेन डेड’ की स्थिति में समय रहते उसके सुरक्षित अंगों को अन्य जरूरतमंदों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।

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