वट सावित्री व्रत पर वृंदावन से अचार्य नीरज जी से जाने विशेष

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    *वट सावित्री व्रत विशेष*
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    इस वर्ष वट सावित्री व्रत पर्व 10 जून 2021 को मनाया जा रहा है। वट सावित्री अमावस्या के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। हिन्दू धर्म में वट सावित्री अमावस्या सौभाग्यवती स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। इस व्रत को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक करने का विधान है।

    मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से पति दीर्घायु और परिवार में सुख शांति आती है। पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इस व्रत में बरगद वृक्ष चारों ओर घूमकर सौभाग्यवती स्त्रियां रक्षा सूत्र बांधकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।

    वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का खास महत्व माना गया है। पीपल की तरह ही वट या बरगद वृक्ष का भी विशेष महत्व है। इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां यानी कुमारी, विवाहिता, कुपुत्रा, सुपुत्रा, विधवा आदि करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। आजकल अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। आइए जानें वट सावित्री अमावस्या व्रत-पूजा विधि-

    *पूजा विधि-:*

    * प्रात:काल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।

    * तत्पश्चात पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।

    * इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।

    * ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।

    * इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वटवृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।

    * इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।

    अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें-

    *अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।*
    *पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।*

    * तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।

    इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें-

    *यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।*
    *तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।*

    * पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।

    * जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।

    * बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।

    * भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासुजी के चरण स्पर्श करें।

    * यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।

    * वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।

    * पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।

    अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें –

    *मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं*
    *सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।*

    * इस वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

    वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।

    वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।

    उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ‘राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।’ सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

    कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

    कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।

    *अमावस्या तिथि कब से कब तक-:*

    09 जून दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू होगी
    10 जून शाम 04 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी।
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    *आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)*

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