गोपाष्टमी, पढ़ें महत्व, पूजा विधि और कथा

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*गोपाष्टमी, पढ़ें महत्व, पूजा विधि और कथा*

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी।

*गोपाष्टमी पूजन विधि-:*

इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते है, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है। गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है, प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा की जाती है और आरती उतरी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला

भगवान् ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले – मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं….
मैय्या यशोदा बोली – अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें…

भगवान् ने कहा – अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे…

मैय्या ने कहा – ठीक है बाबा से पूछ लेना” मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूछने पहुंच गए…

बाबा ने कहा – लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ.. . .

भगवान् ने कहा – बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा …

जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे…

बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले –पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दुंगा…

पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नन्द बाबा ने पूछा, पंडित जी के बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है.. पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।

भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।

माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे ही पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो में कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो… और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ।
जब भगवान् गौएं चराते हुए वृन्दावन जाते तब उनके चरणों से वृन्दावन की भूमि अत्यन्त पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।

*बहुत महत्व है गोपाष्टमी का, गौ सेवा करने से कभी नहीं आते हैं संकट*

गौ अष्टमी के दिन गोवर्धन, गाय और बछड़े तथा गोपाल की पूजन का विधान है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता है तथा सायं काल में गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। आज के दिन अगर श्यामा गाय को भोजन कराएं तो और भी अच्छा होता है।

गाय को हिन्दू मान्यताओं में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। गाय को गोमाता भी कहा जाता है, गाय को मां का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार एक मां अपनी संतान को हर सुख देना चाहती है, उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने कोमल हृदय में स्‍थान देती हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। ऐसी मान्‍यता है कि गोपाष्‍टमी के दिन गौ सेवा करने वाले व्‍यक्‍ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता।

गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक होता है। यह त्‍योहार हमें याद दिलाता है कि हम गौ माता के ऋणी हैं और हमें उनका सम्‍मान और सेवा करनी चाहिए। पौराणिक कथाओं में यह व्‍याख्‍या है कि किस तरह से भगवान कृष्‍ण ने अपनी बाल लीलाओं में गौ माता की सेवा की है।

आधुनिक युग में यदि हम गोपाष्टमी पर गौशाला के लिए दान करें और गायों की रक्षा के लिए प्रयत्न करें तो गोपाष्टमी का पर्व सार्थक होता है और उसका फल भी प्राप्त होता है। तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण में गाय की संभावित भूमिका समझ लेने के बाद गोधन की रक्षा में तत्परता से लगना चाहिए। तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी। गोपाष्टमी का उद्देश्य है, गौ-संवर्धन की ओर ध्यान आकृष्ट करना।

*धार्मिक लिहाज से ही नहीं वैज्ञानिक तौर पर भी विशेष हैं गाय, गोपाष्टमी पर जानें कुछ रोचक तथ्य-:*
यूं तो हिंदू धर्म में गायों को विशेष महत्व दिया जाता है. लेकिन बहुत कम लोग ही गायों से जुड़े वो रहस्य जानते हैं जो हमारे ऋषि मुनि हमें बता कर गए है. आज के वैज्ञानिक भी गाय को एक अद्भुत प्राणी बता रहे हैं. तो जानते हैं कि आखिर गायों को देवी और देवता तुल्य क्यों माना जाता है.

गाय के रीढ़ में सर्वरोगनाशक गुण
गाय के रीढ़ में सूर्यकेतू नाड़ी होती है. जिसमें सर्वरोगनाशक और सर्वविषनाशक गुण होते हैं. सूर्यकेतू नाड़ी जब सूर्य की रोशनी के संपर्क में आती है तो स्वर्ण का उत्पादन करती है. ये स्वर्ण गाय के दूध, मूत्र और गोबर में मिल जाता है. इस तरह गाय के मिलने वाले इन चीजों का विशेष महत्त्व होता है. इसका इस्तेमाल रोजमर्रा के जीवन में हमारे पूर्वज करते आए हैं.

*ऑक्सीजन लेने और छोड़ने वाला एकमात्र प्राणी गाय:*
ये वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध हो चुका है कि गाय एकमात्र ऐसा पशु है जो ऑक्सीजन लेता है और छोड़ता भी है. वहीं, मनुष्य सहित दूसरे प्राणी ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं. इस तरह गाय के आसपास रहने से ही ऑक्सीजन की भरपुर मात्रा पाई जा सकती है. गाय को घर में पालने का रिवाज भी सालों से रहा है. पहले लोग गाय को चराने जाते थे.

मान्यताओं में गायों का विशेष महत्व
हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है. वहीं, ऐसी भी मान्याता है कि गायों में 33 कोटि यानी 33 प्रकार के देवी-देवताओं का वास होता है. जिसमें 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र, और 2 अश्विन कुमार हैं.

*मुक्ति का मार्ग गाय-:*
शास्त्र विद्वानों की मानें तो आत्मा के विकास यात्रा में पशु-पक्षी की योनि से मुक्ति पाने का द्वार गाय से होकर ही जाता है. कहते हैं कि गाय योनि के बाद मनुष्य योनि में आना होता है.

*गाय एक…वरदान अनेक-:*

एक मान्यता यह भी है कि यदि कोई व्यक्त‍ि गाय को भोजन कराकर किसी यात्रा पर जाए तो उसकी यात्रा सफल होने की संभावना बढ़ जाती है. यही नहीं, यात्रा से पहले यदि कोई गाय बछड़े को दूध पिलाती नजर आ जाए तो समझ लें कि उस व्यक्त‍ि की यात्रा सफल हो गई.

यदि आप अपनी जन्म कुंडली में ग्रहों के बीच प्रभाव से परेशान हैं तो इसके लिए भी गाय की पूजा लाभकारी होगी . जन्म कुंडली में यदि शुक्र अपनी नीच राषि कन्या पर हो या शुक्र की दशा चल रही हो तो प्रातःकाल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की देशी गाय को 1 महीने 15 दिन तक लगातार खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधित कुदोष अपने आप ही खत्म हो जाता है.

*ज्योतिष और गाय-:*

कुंडली में अगर पितृदोष है तो भी सफेद गाय को रोटी खिलाने से वह हमेशा के लिए दूर हो जाएगा.
ज्योतिष में गाय से जुड़े कुछ उपाय करने से दूर हो जाती हैं परेशानियां

गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र जीव माना गया है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है गाय के शरीर पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है। आइए जानते हैं ज्योतिष में गाय से जुड़े कुछ तथ्य और उपाय जिसको करने से हर एक काम में सफलता पायी जा सकती है।

– पहली रोटी गौ माता के लिए पकाएं व खिलाएं।
– प्रत्येक मांगलिक कार्यों में गौ माता को अवश्य शामिल करें।
– गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं।
– बच्चे अगर कहने से बाहर हो तो गौमाता को भोजन उनके हाथ से या हाथ लगवा कर खिलाएं।
– प्रतिदिन,सप्ताह में या महीने में एक बार गौशाला परिवार समेत जाने का नियम बनाएं।
– गर्मियों में गौ माता को पानी अवश्य पिलाएं।
– सर्दियों में गौ माता को गुड़ खिलाएं। गर्मियों में गाय को गुड़ न खिलाएं।
– गौ माता के पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है, इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं।
– परिवार में गौ से प्राप्त पंचगव्य युक्त पदार्थों का उपयोग करें, पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते।
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गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं।
– गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है।
– गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है व सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है।
– गौ माता के गोबर से निर्मित शुद्ध धूप-बत्ती का उपयोग करें।
– गौ गोबर के बने उपलों से रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
– घर के दरवाजे पर गाय आये तो उसे खाली न लौटाएं।
– गौ माता को कभी पैर न लगाए, गौ माता अन्नपूर्णा देवी कामधेनु है, मनोकामना पूर्ण करने वाली है।
– गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे य गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है।
– जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।
– गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है और गौ माता के मुत्र में गंगाजी का वास होता है।
– गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।

– गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है। उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है। रोजाना सुबह गौ माता की पीठ पर हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है।
– तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है वो वैतरणी गौ माता की पूंछ पकड कर पार करता है। उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है।
– जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है।
– गाय माता आनंदपूर्वक सासें लेती है छोडती है । वहां से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है।
– जो धैर्य पूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है।
– स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र अर्क को रोजाना दो तोला सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं।
– गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है।
– कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो या प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा।

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*आचार्य नीरज पराशर (श्रीधाम वृन्दावन)*

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